36 Rajasthan Ki Pramukh Lok Kalaen Best Notes

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राजस्थान की प्रमुख लोक कलाएँ (Rajasthan Ki Pramukh Lok Kalaen)

राजस्थान की प्रमुख लोक कलाएँ (Rajasthan Ki Pramukh Lok Kalaen) :- कल हमने राजस्थान के प्रमुख महोत्सव और राजस्थान के प्रमुख उर्स को पढ़ा था । और आज हम राजस्थान की प्रमुख लोक कलाएँ (Rajasthan Ki Pramukh Lok Kalaen) को पढ़ेंगे ।

फड़ कला/पड़ कला

• खादी या रेग्जीन के कपड़े पर देवताओं का चित्रांकन करना, फड़ कहलाता है ।
• फड़ बनाने वाले को चितेरा कहा जाता है ।
• फड़ बनाने का कार्य शाहपुर (भीलवाड़ा) में किया जाता है ।
• फड़ बनाने का कार्य जोशी परिवार के छिपा करते है ।
• प्रसिद्ध फड़ चितेरा श्री लाल जोशी है ।
• भारत की प्रथम महिला फड़ चितेरी पार्वती जोशी है ।
• जब फड़ जीण क्षीण हो जाती है तो उसे पुष्कर झील में प्रवाहित कर दिया जाता है, उसे फड़ ठण्डी करना कहते हैं ।

पाबू की फड़

• पाबू जी की फड़ सबसे प्रसिद्ध फड़ है ।
• इसका वाचन पाबूजी के भोपा यंत्र के साथ करते हैं ।

देवनारायण जी की फड़

• देवनारायण जी की फड़ सबसे प्राचीन फड़ है ।
• सर्वाधिक चित्रांकन वाली फड़ है तथा सबसे बड़ी फड़ है ।
• एकमात्र लोकदेवता है जिसकी फड़ पर डाक टिकट (2 सितम्बर 1992) जारी की गयी ।
• देवनारायण जी की फड़ का वाचन करते समय जन्तर वाद्ययंत्र का प्रयोग किया जाता है ।
• इस फड़ का वाचन गुर्जर जाति के बगावत भोपा ही करते है ।

गोगाजी की फड़

• गोगाजी की फड़ डेरू वाद्य यंत्र के साथ गोगाजी के भोपा इसका वाचन कहते है ।

भैसासुर की फड़

• भैसासुर की फड़ राजस्थान की एकमात्र फड़ है जिसका वाचन नहीं किया जाता ।
• बावरी जाति के लोग चोरी करने से पहले इसकी पूजा करके सगुन लेते हैं ।

रामदेवजी की फड़

• रावणहत्था वाद्य यंत्र के साथ कामड़िया जाति के भोपा रामदेवजी की फड़ का वाचन करते है ।
• रामदेवजी की फड़ को चौथमल चितेरे ने बनाई ।

रामदला व कृष्णदला की फड़

• रामदला व कृष्णदला की फड़ हाड़ौती क्षेत्र में प्रसिद्ध है ।
• राजस्थान की एकमात्र फड़ जिसमें किसी भी प्रकार का वाद्य यंत्र का प्रयोग नहीं किया जाता है ।
• धुलजी चितेरे ने बनाई ।

अमिताभ की फड़

• अमिताभ की फड़ रामलाल भोपा व पतासी भोपण ने बनाई ।

पॉटरी कला

• चीनी मिट्टी के बर्तन बनाने की कला को पॉटरी कला कहते है ।

ब्ल्यू पॉटरी

राजस्थान की प्रमुख लोक कलाएँ Rajasthan Ki Pramukh Lok Kalaen ब्ल्यू पॉटरी

• चीनी मिट्टी के बर्तनों पर सुन्दर नकाशी का कार्य ब्ल्यू पॉटरी कहलाता है ।
• ब्ल्यू पॉटरी का जन्म पार्शिया (ईरान) में हुआ ।
• अकबर के शासनकाल में यह कला भारत में लाई गई थी ।
• 16 वीं शताब्दी में राजस्थान में यह प्रारम्भ हुई ।
• सर्वप्रथम राजस्थान में जयपुर में मानसिंह प्रथम के समय इसका प्रारम्भ हुआ ।
• रामसिंह द्वितीय के समय इसका सर्वाधिक विकास हुआ ।
• प्रसिद्ध अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकार कृपालसिंह शेखावत (सीकर) है ।
• कृपालसिंह ने ब्ल्यु पॉटरी में 25 रंगो का प्रयोग किया ।

ब्लैक पॉटरी

• ब्लैक पॉटरी कोटा की प्रसिद्ध है ।
• कागजी या परतदार पॉटरी
• कागजी या परतदार पॉटरी अलवर की प्रसिद्ध है ।

थेवा कला

• काँच के बर्तनों पर स्वर्ण नकाशी का काम थेवा कला कहलाता है ।
• इसका जन्मदाता नाथू जी सोनी है तथा इस कला के लिए सोनी परिवार प्रसिद्ध है ।
• थेवा कला के लिए प्रतापगढ़ प्रसिद्ध है ।
• थेवा कला का कार्य हरे रंग के काँच पर किया जाता है, जो बेल्जियम से मंगवाया जाता है ।
• थेवा कला के प्रसिद्ध कलाकार कुरतसिंह है ।

पेपर मेशी या कुट्टी कला

• कागज की लुगदी से विभिन्न प्रकार की कलात्मक वस्तुएँ बनाना पेपरमेशी या कुट्टी कला कहलाती है ।
• यह उदयपुर व जयपुर की प्रसिद्ध कला है ।

मिरर वर्क कला

• कपड़े पर छोटे – छोटे काँच के टुकड़े जड़ने की केला मिरर वर्क कला कहलाती है ।
• इस कला के लिए जैसलमेर प्रसिद्ध है ।

उस्ता कला

• उस्ता कला को मुनावाती कला भी कहा जाता है ।
• केंद्र की खाल पर स्वर्ण नकाशी का काम उस्ता कला कहलाती है ।
• इस कला का प्रसिद्ध कलाकार हिस्सामुद्दीन है ।

नमदे कला

• ऊन को फुटकर जमाकर जो वस्त्र बनाये जाते है वो कला नमदे कहलाती है ।
• नमदे बनाने के लिए टोक प्रसिद्ध है ।

अजरक प्रिन्टर

• अजरक प्रिन्टर बाड़मेर की प्रसिद्ध है ।
• राजस्थानी परम्परा का हाथ जोड़कर नमस्कार करते हुए अजरक प्रिन्ट में ही दिखाया गया है ।

मलीर प्रिन्ट

• मलीर प्रिन्ट बाड़मेर की प्रसिद्ध है ।

आजम या जाजम प्रिन्ट

• छिपों का अकोला चितौड़गढ़ की प्रसिद्ध है ।

कुन्दन कला

• सोने के आभूषणों पर किमती पत्थर जड़ने की कला कुन्दन कहलाती है ।
• इस कला के लिए जयपुर प्रसिद्ध है ।

मीनाकारी कला

• आभूषणों पर मीना (रंग) चबाने की कला मीनाकारी कला कहलाती है ।
• इस कला के लिए जयपुर प्रसिद्ध है ।

बादला कला

• जिंक से निर्मित पानी की बोतले जिनमें पानी ठण्डा रहता है, बादला कला कहलाती है ।
• इस कला के लिए जोधपुर प्रसिद्ध है ।

टेराकोटा कला

• टेराकोटा कला मिट्टी के बर्तनों पर कलात्मक चित्रकारी टेराकोटा कला कहलाती है ।
• टेराकोटा के लिए मोलेला (राजसमन्द) प्रसिद्ध है ।
• सुनहरी टेराकोटा बीकानेर की प्रसिद्ध है तथा कागजी टेराकोटा अलवर की प्रसिद्ध है ।

ताराकाशी कला

• आभूषणों पर चांदी के बारीक तार जड़ने की कला ताराकाशी कला कहलाती है ।
• इस कला के लिए नाथद्वारा (राजसमन्द) प्रसिद्ध है ।

मुरादाबादी कला

• पीतल के बर्तनों पर सुन्दर नकाशी का कार्य मुरादाबादी कला कहलाता है ।
• इस कला के लिए जयपुर और अलवर प्रसिद्ध है ।

मथैरणा कला

• मथैरणा कला के लिए बीकानेर प्रसिद्ध है ।
• देवी देवताओं के विभिन्न भित्ति चित्र बनाना मथैरणा कला कहलाती है ।

रत्नाभूषण कला

• रत्नाभूषण कला जयपुर की प्रसिद्ध कला है ।

अम्ब्रेला (छता) कला

• अम्ब्रेला (छता) कला के लिए फालणा (पाली) प्रसिद्ध है ।

बर्क कला

• बर्क कला के लिए जयपुर प्रसिद्ध है ।
• मिठाईयों पर चाँदी की पतली परत लगाई जाती है, जिसे वर्क / बर्क कहते है ।

काष्ठ कला

• लकड़ी की विभिन्न कलात्मक वस्तुएँ बनाने की कला काष्ठ कला कहलाती है ।
• इस कला के लिए बस्सी (चित्तौड़गढ़) प्रसिद्ध है ।
• इस कला के लिए प्रभात जी सुथार प्रसिद्ध है ।

तोरण कला

• इस कला के लिए जयपुर प्रसिद्ध है ।

कठ-पुतली कला

• कठ-पुतली कला के लिए उदयपुर प्रसिद्ध है तथा इस कला का प्रसिद्ध कलाकार देवीलाल है ।

बेवाण कला

• लकड़ी का बना देव विमान जिसकी सवारी देवझुलनी एकादशमी को निकाली जाती है ।
• यह कला चित्तौड़गढ़ की प्रसिद्ध है तथा इसे मिनिएचर वुडन टेम्पल भी कहते है ।

कावड़ कला

• कावड़ कपाटों में खुलने व बंद होने वाला मन्दिरनुमा संरचना होती है, जिसे काबड़ कहते है ।
• इसे चलता-फिरता देवघर भी कहते है ।

बाजोट कला

• यह एक चौकी है, जिस पर पूजा व भोजन की थाली रखी जाती है, बाजोट कहलाती है ।

पिछवाई कला

• पिछवाई कला नाथद्वारा (राजसमन्द) की प्रसिद्ध कला है ।
• पिछवाई कला का सम्बन्ध भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं से है ।

पाने कला

• कागज पर देवी – देवताओं की चित्र, पाने कहलाते है ।

विशेष तथ्य

• मेहन्दी के लिए सोजत (पाली) प्रसिद्ध है ।
• मलमल के लिए मथानिया (जोधपुर) प्रसिद्ध है ।
• हाथी-दाँत की चुड़ियाँ बनाने के लिए जोधपुर प्रसिद्ध है ।
• हाथी दाँते पर खुदाई जयपुर में की जाती है ।
• राजपूत महिलाएँ विवाह के अवसर पर हाथी दाँत से बनी चुड़िया पहनती है ।
• राजपूत महिलाओं का विवाह के पश्चात् गोत्र नहीं बदलते है ।
• आम पापड़ बनाने के लिए बांसवाड़ा प्रसिद्ध है ।
• पापड़ – बुजियाँ बनाने के लिए बीकानेर प्रसिद्ध है ।
• चमड़े की मोचड़ियाँ बनाने के लिए जोधपुर प्रसिद्ध है । दुल्हे – दुल्हन की जुतियाँ बिनोटा कहलाती है ।
• मसुरिया साड़ियों के लिए कोटा प्रसिद्ध है ।
• गोटे का सर्वाधिक कार्य खण्डेला (सीकर) में किया जाता है ।

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