Best Historical Source Part 1

Best historical source (ऐतिहासिक स्रोत)

किसी व्यक्ति, समाज अथवा देश से सम्बंधित महत्वपूर्ण, विशिष्ट व सार्वजनिक क्षेत्र की घटनाओं, तथ्यों आदि का कालक्रमिक विवरण (Chronological Description) इतिहास कहलाता है । इतिहास किसी समाज विशेष की सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक एवं आर्थिक स्थिति तथा इन स्थितियों में समय के साथ-साथ होने वाले परिवर्तनों को भी प्रस्तुत करता है ।

Archaeological Sources (पुरातात्विक स्रोत)

• किसी देश अथवा स्थान का इतिहास जानने के लिए तथा उसके उचित विश्लेषण में पुरातात्विक साक्ष्यों व स्रोतों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । पुरातात्विक साक्ष्यों के अन्तर्गत अभिलेख, सिक्के, स्मारक, भवन, मूर्तियाँ बर्तन आदि शामिल किए जाते हैं । अधिकांश पुरातात्विक साक्ष्य प्राचीन टीलों (Mounds) की खुदाई से प्राप्त किए जाते हैं ।
• टीला धरती की सतह के उस उभरे हुए भाग को कहते हैं, जिसके नीचे पुरानी बस्तियों के अवशेष विद्यमान होते हैं । ये कई प्रकार के हो सकते हैं, जैसे- एकल-सांस्कृतिक, मुख्य सांस्कृतिक और बहु-सांस्कृतिक ।

प्राचीन टीलों अथवा स्मारकों का उत्खनन कर वहाँ से प्राप्त वस्तुओं व कलाकृतियों के आधार पर क्रमिक ऐतिहासिक विश्लेषण करना, पुरातत्व विज्ञान (आर्कियोलॉजी) कहलाता है ।

• पश्चिमोत्तर भारत में हुए उत्खननों से ऐसे नगरों का पता चलता है, जिनकी स्थापना लगभग 2500 ईसा पूर्व हुई थी ।
• उत्खननों से हमें गंगा की घाटी में विकसित भौतिक संस्कृति के विषय में भी जानकारी मिली है कि, उस समय के लोग किस प्रकार की बस्तियों में रहते थे, उनकी सामाजिक संरचना कैसी थी, वे किस प्रकार के मृद्भांड उपयोग करते थे, किस प्रकार के घरों में रहते थे, भोजन में किन अनाजों का उपभोग करते थे और किस प्रकार के औजारों तथा हथियारों का प्रयोग करते थे ।
• दक्षिण भारत के कुछ लोग मृत व्यक्ति के शव के साथ औजार, हथियार, मिट्टी के बर्तन आदि वस्तुएँ कब्र में दफनाते थे तथा इसके ऊपर एक घेरे में बड़े-बड़े पत्थर खड़े कर दिए जाते थे । ऐसे स्मारकों को महापाषाण (मेगालिथ) कहते हैं ।
• किसी प्राचीन वस्तु में विद्यमान C14 में आयी कमी को माप कर उसके समय का निर्धारण किया जा सकता है ।

रेडियो कार्बन डेटिंग ऐसी विधि है जिसके द्वारा यह पता लगाया जाता है कि, कोई वस्तु किस काल से सम्बंधित है । रेडियो कार्बन या कार्बन-14 (C14) कार्बन का रेडियोधर्मी (रेडियोएक्टिव) समस्थानिक (आइसोटोप) है, जो सभी सजीव वस्तुओं में विद्यमान होता है ।

• रेडियो कार्बन डेटिंग विधि से पता चला है कि, राजस्थान और कश्मीर में कृषि का प्रचलन लगभग 7000-6000 ईसा पूर्व में भी था ।
• पौधों के अवशेषों का परीक्षण कर विशेषतः परागों (Pollen) के विश्लेषण द्वारा जलवायु और वनस्पति का इतिहास जाना जाता है ।
• पशुओं की हड्डियों का परीक्षण कर उनकी आयु की पहचान की जाती है तथा उनके पालतू होने एवं अनेक प्रकार के कार्य में लाए जाने का पता लगाया जाता है ।

Coins (सिक्के)

• सिक्कों के अध्ययन को मुद्राशास्त्र (न्यूमिस्मेटिक्स) कहते हैं । मुद्राओं की बनावट एवं उनमें प्रयुक्त धातुओं की मात्रा के आधार पर ऐतिहासिक घटनाओं पर प्रकाश पड़ता है । प्राचीन काल में अधिकांश मुहरे धातुओं की बनायी जाती थीं जिन सिक्कों व मुद्राओं पर कोई लेख नहीं होता था, केवल आकृतियाँ विद्यमान होती थीं, उन्हें पंचमार्क या आहत् सिक्के कहा जाता था ।
• भारत में पुरातात्विक खुदाई से बड़ी संख्या में ताँबे, चाँदी, सोने और सीसे के सिक्कों के साँचे मिले हैं । इनमें से अधिकांश साँचे कुषाण काल के अर्थात् ईसा की आरंभिक तीन शताब्दियों से सम्बंधित हैं ।
• भारत में मिले आरंभिक सिक्कों पर प्रतीक चिह्न मिलते हैं, परन्तु बाद के सिक्कों पर राजाओं और देवताओं के नाम तथा तिथियाँ अंकित मिलती हैं ।
• सिक्कों पर लेख एवं तिथियों उत्कीर्ण करने की परम्परा सर्वप्रथम यूनानी शासकों ने प्रारम्भ की ।
• सिक्कों का प्रयोग दान-दक्षिणा, खरीद-बिक्री और वेतन-मजदूरी आदि के भुगतान में होता था, इसलिए सिक्कों का आर्थिक इतिहास के अध्ययन में भी महत्वपूर्ण योगदान है ।
• भारत में सर्वाधिक सिक्के मौर्योत्तर काल के मिले हैं, जो विशेषतः सीसे, पोटीन, ताँबे, काँसे, चाँदी और सोने से निर्मित हैं ।
• गुप्त शासकों ने सबसे अधिक सोने के सिक्के जारी किए । जबकि सर्वाधिक शुद्ध सोने के सिक्के कुषाण शासकों ने प्रचलित किए । सातवाहन शासकों ने सबसे अधिक शीशे के सिक्के जारी किए थे ।

Record (अभिलेख)

• अभिलेख सिक्कों से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं । इसके अध्ययन को पुरालेखशास्त्र (एपिग्राफी) कहते हैं ।
• भारत के संदर्भ में सर्वाधिक प्राचीन अभिलेख मध्य एशिया के बोगाजकोई से प्राप्त हुये हैं । इस अभिलेख में इन्द्र, वरुण, मित्र एवं नासत्य नामक वैदिक देवताओं के नाम मिलते हैं ।
• अभिलेख एवं दूसरे पुराने दस्तावेजों की प्राचीन तिथि के अध्ययन को पुरालिपिशास्त्र (पैलियोग्राफी) कहते हैं । अभिलेख मुहरों, प्रस्तरस्तम्भों, स्तूपों, चट्टानों और ताम्रपत्रों पर मिलते हैं तथा इसके अतिरिक्त मंदिर की दीवारों, ईंटों व मूर्तियों पर भी मिलते हैं । आरंभिक अभिलेख प्राकृत भाषा में हैं तथा ये ईसा पूर्व तीसरी सदी के हैं । अभिलेखों में संस्कृत भाषा ईसा की दूसरी सदी से मिलने लगी तथा चौथी-पाँचवीं सदी में इसका सर्वत्र व्यापक प्रयोग होने लगा ।

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अभिलेखों में प्रयुक्त लिपियाँ
1. ब्राह्मी लिपि : अशोक के अधिकतर शिलालेख ब्राह्मी लिपि में हैं । यह लिपि बाएँ से दाएँ लिखी जाती थी ।
2. खरोष्ठी लिपि : अशोक के कुछ शिलालेख खरोष्ठी लिपि में हैं, जो दाएँ से बाएँ लिखी जाती थी ।
3. यूनानी एवं आरमेइक लिपि : पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अशोक के शिलालेखों में इन लिपियों का प्रयोग हुआ है ।

• मौर्य सम्राट अशोक के अनेक अभिलेख देश के विभिन्न भागों से मिले हैं, जिनसे उसके साम्राज्य की सीमा, धम्म और शासन नीति पर प्रकाश पड़ता है ।
• उदयगिरि से प्राप्त हाथीगुम्फा अभिलेख से कलिंग नरेश खारवेल की उपलब्धियों के संदर्भ में जानकारी प्राप्त होती है ।
• शक क्षत्रप रूद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से शक शासक रुद्रदामन, अशोक व चन्द्रगुप्त मौर्य के संदर्भ में जानकारी प्राप्त होती है ।

प्रमुख अभिलेख व शासक
अभिलेखशासक
1. हाथीगुम्फा अभिलेखकलिंग नरेश खारवेल
2. एहोल अभिलेखपुलकेशिन- II
3. नासिक अभिलेखगौतमी बलश्री
4. जूनागढ़ अभिलेखरुद्रदामन
5. प्रयाग स्तम्भ अभिलेखसमुद्रगुप्त
6. मन्दसौर अभिलेखमालवा नरेश यशोवर्मन
7. ग्वालियर अभिलेखप्रतिहार नरेश भोज
8. देवपाड़ा अभिलेखबंगाल शासक विजयसेन
9. भितरी व जूनागढ़ अभिलेखस्कंदगुप्त
नोट : भारत का सर्वप्रथम उल्लेख हाथी गुम्फा अभिलेख में मिलता है ।

• वशिष्ठी पुत्र पुलुमावी के नासिक गुहा अभिलेख के माध्यम से उनकी धार्मिक सहिष्णुता और उनकी संस्कृति के संदर्भ में जानकारी प्राप्त होती है ।
• समुद्रगुप्त के प्रयाग स्तंभ अभिलेख से समुद्रगुप्त की विजय व विजित राजाओं के साथ उसकी नीतियों के संदर्भ में जानकारी प्राप्त होती है ।
• मौर्य, मौर्योत्तर और गुप्त काल के अधिकांश अभिलेख कार्पस इनसक्रिप्शओनम इंडिकारम् नामक ग्रंथमाला में संकलित कर प्रकाशित किए गए हैं ।
• सबसे पुराने अभिलेख हड़प्पा संस्कृति की मुहरों पर मिलते हैं । ये लगभग 2500 ई. पू. के हैं ।
• हड़प्पा संस्कृति के अभिलेख अभी तक पढ़े नहीं जा सके हैं । ये भावचित्रात्मक लिपि में लिखे गए हैं, जिसमें विचारों और वस्तुओं को चित्रों के रूप में व्यक्त किया जाता था ।
• सबसे पुराने अभिलेख जो पढ़े जा चुके हैं, वे ईसा पूर्व तीसरी सदी के अशोक के शिलालेख हैं । इन अभिलेखों को पढ़ने में सर्वप्रथम सन् 1837 में जेम्स प्रिन्सेप को सफलता मिली, जो उस समय बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में ऊँचे पद पर कार्यरत थे ।

पुरातात्विक स्तम्भ अभिलेख व उनके स्थान
स्तम्भ लेखस्थलसम्बद्ध व्यक्तिसमयअभिलेख की विषय-वस्तु
1. मेहरौली स्तम्भ लेखमेहरौली (दिल्ली) कुतुब मीनारचन्द्रगुप्त – IIगुप्तकालीनयह स्तम्भ चन्द्रगुप्त द्वितीय (380-412 ई.) के वैष्णव होने, वंगा (बंगाल) विजय तथा सप्त सिन्धु के समीप विभिन्न राजाओं के समूह से युद्ध एवं विजय के विवरण प्रदान करता है । मूलतः यह स्तम्भ विष्णुपद पहाड़ी (सम्भवतः उदयगिरि, मध्य प्रदेश) पर स्थापित था जिसे बाद में दिल्ली के किसी शासक द्वारा यहाँ (दिल्ली में) स्थापित करवाया गया ।
2. प्रयाग प्रशस्ति (स्तंम्भ लेख)प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)समुद्रगुप्तगुप्तकालीनसंस्कृत में रचित यह प्रशस्ति मूलतः एक अशोक स्तम्भ पर अंकित है, जो समुद्रगुप्त द्वारा 200 ई. में कौशाम्बी से प्रयाग लाया गया था । इस पर समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिषेण ने काव्यात्मक शैली में समुद्रगुप्त के वंश परिचय, उसकी विजयों एवं राज्यविस्तार का वर्णन किया है ।
3. बौद्ध स्तम्भ लेखभरहुत (सतना, मध्य प्रदेश)राजा वासुदेवशुंग कालइस अभिलेख से शुंग वंश के विषय में जानकारी प्राप्त होती है ।
4. मथुरा स्तम्भ लेखमथुरा (उत्तर प्रदेश)चन्द्रगुप्त – IIगुप्तकालीनयह प्रथम गुप्त अभिलेख है, जिसमें गुप्त संवत् का प्रथम वर्ष वर्णित है । इस स्तम्भ लेख द्वारा वैष्णव धर्म के अनुयायी गुप्त सम्राट की धार्मिक सहिष्णुता पर प्रकाश पड़ता है । इसमें माहेश्वर समुदाय के उदिताचार्य का भी वर्णन है ।
5. गरुड़ स्तम्भ लेख (हेलिओहोरस स्तम्भ)बेसनगर (विदिशा मध्य प्रदेश)भागभद्र, होलिओडोरस इण्डो-ग्रीक शासक एटिंआलकिडस का राजदूत]शुंग कालइसमें दो अभिलेख उत्कीर्ण हैं । एक अभिलेख में हेलियोडोरस को वासुदेव का अनुयायी बताते हुए उसके द्वारा स्तम्भ निर्माण का वर्णन है तथा दूसरे अभिलेख में महाभारत के एक श्लोक का उल्लेख है ।
6. एरण स्तम्भ लेखएरण (सागर, मध्य प्रदेश)समुद्रगुप्तगुप्तकालीनयह साम्भ से समुद्रगुप्त के व्यक्तिगत मामलों की जानकारी देता है । यह विदर्भी शैली में है । इस पर अंक उत्कीर्ण किए गए है ।
7. एरण स्तम्भ लेखएरण (मध्य प्रदेश)बुद्धगुप्तगुप्तकालीनयह स्तम्भ लेख भगवान विष्णु का सर्वप्रथम अभिलेखीय प्रमाण है तथा इसमें भगवान विष्णु की महिमा में महाराजा मातृ विष्णु एवं धन्य विष्णु द्वारा ध्वज स्तम्भ के निर्माण का उल्लेख है । इसमें सप्ताह के दिनों के नामों का प्रारम्भिक उल्लेख किया गया है ।
8. भीतरी स्तम्भ लेखभीतरी (गाजीपुर, उत्तर प्रदेश)स्कन्दगुप्तगुप्तकालीनइस लेख में स्कन्दगुप्त के वंश परिचय, हूणों के आक्रमण तथा स्कन्दगुप्त द्वारा उनके दमन का उल्लेख है ।
9. बिहार स्तम्भ लेखबिहारशरीफ (पटना, बिहार)स्कन्दगुप्तगुप्तकालीनइस स्तम्भ पर कोई तिथि अंकित नहीं है । इस पर स्कन्दगुप्त तक के गुप्त शासकों तथा कुछ पदाधिकारियों का उल्लेख है ।
10. बिलसड़ स्तम्भ लेखभिलसड़ (एटा, उत्तर प्रदेश)कुमार गुप्त – Iगुप्तकालीनइस अभिलेख में गुप्त संवत 96 (415 ई.) अंकित है तथा कुमारगुप्त तक के गुप्त शासकों का उल्लेख है । इसी अभिलेख में ध्रुवशर्मा नामक एक ब्राह्मण द्वारा कार्तिकेय मंदिर तथा धर्मसंघ के निर्माण का उल्लेख भी है ।
11. एरण स्तम्भ लेखएरण (मध्य प्रदेश)भानुगुप्तगुप्तकालीन510 ई. के इस अभिलेख में भानुगुप्त को विश्व का सर्वश्रेष्ठ वीर कहा गया है तथा हूणों के विरुद्ध युद्ध करते हुए उसके मित्र गोपराज की मृत्यु तथा उसके पश्चात् गोपराज की पत्नी के सती होने का उल्लेख है ।
12. तालगुंडा स्तम्भ लेखशिमोगा (मैसूर, कर्नाटक)शांति वर्मन/मयूर शर्मनगुप्तकालीनयह स्तम्भ लेख दक्षिण में कदम्बों के इतिहास के अध्ययन का महत्वपूर्ण स्रोत है इसमें कदम्ब शासक मयूरशर्मन के पल्लवों से संघर्ष का उल्लेख है ।

literary source (साहित्यिक स्रोत)

Foreign Statement (विदेशी विवरण)

14 राजस्थान के लोकगीत Quiz

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