Best Historical Literary Sources (Sahityik Sarot/ साहित्यिक स्रोत)
4. साहित्यिक स्रोत (Literary Sources)
यद्यपि प्राचीन भारतीयों को लिपि का ज्ञान 2500 ईसा पूर्व में भी था, परन्तु हमारी प्राचीनतम् उपलब्ध पाण्डुलिपियाँ ईसा की चौथी सदी के पहले की नहीं हैं तथा ये मध्य एशिया से प्राप्त हुई हैं ।
भारत में पाण्डुलिपियाँ, भोजपत्रों और ताड़पत्रों पर लिखी मिलती हैं, परन्तु मध्य एशिया में जहाँ भारत से प्राकृत भाषा फैल गई थी,
ये पाण्डुलिपियाँ मेषचर्म एवं काष्ठफलकों पर लिखी गई हैं ।
सम्पूर्ण भारत में संस्कृत की पुरानी पाण्डुलिपियाँ मिली हैं, परन्तु इनमें से अधिकांश दक्षिण भारत, कश्मीर और नेपाल से प्राप्त हुई है ।
हिंदुओं के धार्मिक साहित्य में वेद, रामायण, महाभारत, पुराण आदि सम्मिलित हैं ।
ऋग्वेद को 1500-1000 ईसा पूर्व के लगभग का मान सकते हैं, लेकिन अथर्ववेद, यजुर्वेद, ब्राह्मणग्रंथ, अरण्यकों और उपनिषदों को 1000-500 ईसा पूर्व के लगभग का माना जाता है ।
ऋग्वेद में मुख्यतः देवताओं की स्तुतियाँ हैं, परन्तु बाद के साहित्य में स्तुतियों के साथ-साथ कर्मकाण्ड, जादू-टोना और पौराणिक आख्यान हैं । उपनिषदों में हमें दार्शनिक चिंतन मिलते हैं ।
वैदिक मूलग्रंथ का अर्थ समझ में आए इसलिए वेदांगों अर्थात् वेद के अंगभूत शास्त्रों की रचना की गयी थी ।
वेदांग
वेदों का अर्थ समझने व सूक्तों के सही उच्चारण के लिए वेदांग की रचना की गई ।
वेदांग- 6 है ।
शिक्षा : वैदिक शब्दों के शुद्ध उच्चारण हेतु इसका निर्माण हुआ ।
कल्प : वैदिक कर्मकाण्डों को सम्पन्न कराने हेतु विधि व नियम ।
व्याकरण : इसमें नामों एवं धातुओं की रचना एवं उपसर्ग, प्रत्यय के प्रयोग हेतु नियम ।
निरुक्त : शब्दों की व्युत्पत्ति हेतु नियम । यह भाषा शास्त्र का प्रथम ग्रंथ माना जाता है । यास्क ने निरूक्त की रचना की ।
छंद : वैदिक साहित्य में गायत्री, त्रिष्टुप, जगती, वृहती का प्रयोग किया जाता है ।
ज्योतिष : इसमें ज्योतिष शास्त्र के विकास को दिखाया गया है । इसके प्रसिद्ध आचार्य लगध मुनि थे ।
सूत्रलेखन का सबसे विख्यात उदाहरण पाणिनि का व्याकरण ग्रंथ अष्टाध्यायी, है जो 400 ईसा पूर्व के आस-पास लिखा गया था ।
पाणिनी ने अपने समय के समाज, अर्थव्यवस्था और संस्कृति पर गहन प्रकाश डाला ।
महाभारत, जिसे व्यास की कृति माना जाता है, संभवतः दसवीं सदी ईसा पूर्व से चौथी सदी ई. तक की स्थिति का आभास देता है । पहले इसमें केवल 8,800 श्लोक थे तथा इसका नाम जय संहिता था, जिसका अर्थ है, विजय सम्बंधी संग्रह ग्रंथ । कालान्तर में इसके श्लोकों की संख्या बढ़कर 24,000 हो गई ।
वर्तमान में इस महाकाव्य में एक लाख से अधिक श्लोक हो गए हैं और तदानुसार यह शतसाहस्री संहिता या महाभारत कहलाने लगा । इससे तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है ।
वाल्मीकि रामायण में मूलतः 6,000 श्लोक थे, जो बढ़कर 12,000 श्लोक हो गए और वर्तमान में इसमें 24,000 श्लोक हो गए । इसकी रचना संभवतः ईसा-पूर्व पाँचवीं सदी में प्रारम्भ हुई थी जिसकी रचना महाभारत के बाद हुई प्रतीत होती है ।
राजाओं के द्वारा कराए जाने वाले अनुष्ठान और तीन उच्च वर्णों के धनाढ्य पुरुषों द्वारा किए जाने वाले अनुष्ठान व सार्वजनिक यज्ञों के विधि-विधान श्रौतसूत्रों में दिए गए हैं ।
जातकर्म (जन्मानुष्ठान), नामकरण, उपनयन, विवाह, श्राद्ध आदि घरेलू या पारिवारिक अनुष्ठानों का विधि-विधान गृह्यसूत्रों में पाया जाता है । श्रौतसूत्र और गृह्यसूत्र दोनों 600-300 ई. पू. के आस-पास के हैं ।
शुल्वसूत्र में यज्ञवेदी के निर्माण के लिए विविध प्रकार के मापों का विधान है । ज्यामिति और गणित का अध्ययन वहीं से आरंभ होता है ।
प्राचीनतम् बौद्ध ग्रंथ पालि भाषा में लिखे गए थे । यह भाषा मगध अर्थात् दक्षिण बिहार में बोली जाती थी ।
इन ग्रंथों में हमें केवल बुद्ध के जीवन के विषय में ही नहीं, बल्कि उनके समय के मगध, उत्तरी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के अनेक शासकों के विषय में भी जानकारी मिलती है ।
ऐसा विश्वास था कि, गौतम के रूप में जन्म लेने से पहले बुद्ध 550 से अधिक पूर्व-जन्मों से (पशु के रूप में भी) गुजरे थे, जिनका वर्णन जातक कथाओं में है । जातक कथाएँ बौद्ध ग्रंथ के सुत्तपिटक के सुदृढकनिकाय का 10वाँ भाग है । ये महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्म सम्बंधी कथाएँ हैं । ये कथाएँ बुद्ध की बोधिसत्व (बुद्धत्व प्राप्त करने के लिए उद्यमशील) अवस्था को दर्शाती हैं ।
जैन ग्रंथों की रचना प्राकृत भाषा में हुई थी । ईसा की छठीं सदी में गुजरात के वल्लभी नगर में इन्हें अन्तिम रूप से संकलित किया गया था ।
धर्मसूत्र, स्मृतियाँ और टीकाएँ इन तीनों को मिलाकर धर्मशास्त्र कहा जाता है । धर्मसूत्रों का संकलन 500-200 ई. पू. में हुआ था ।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र अत्यन्त महत्वपूर्ण विधिग्रंथ है । यह 15 अधिकरणों या खंडों में विभक्त है । इसमें प्राचीन भारतीय राजतंत्र व अर्थव्यवस्था के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण सामग्री मिलती है ।
कालिदास ने काव्य और नाटक लिखे, जिनमें अभिज्ञानशाकुंतलम् सबसे प्रसिद्ध है ।
कुछ प्राचीनतम तमिल ग्रंथ भी हैं, जो संगम साहित्य में संकलित है । राजाओं द्वारा संरक्षित विद्या केन्द्रों में एकत्र होकर कवियों और भाटों ने तीन-चार सदियों में इस साहित्य का सृजन किया था । ऐसी साहित्यिक सभा को संगम कहते थे, इसलिए इस समय लिखे गये सम्पूर्ण साहित्य संगम साहित्य के नाम से प्रसिद्ध हो गये ।
संगम ग्रंथ वैदिक ग्रंथों से, विशेषकर ऋग्वेद से भिन्न प्रकार के हैं । ये धार्मिक ग्रंथ नहीं हैं । इसके अन्तर्गत अनेक कवियों ने मुक्तकों व प्रबंध काव्यों की रचना की है, जिनमें बहुत से नायकों (वीरपुरुषों) और नायिकाओं का गुणगान है ।
संगम साहित्य के प्रमुख ग्रन्थ हैं : तोलकाप्पियम, शिलप्पादिकारम एवं मणिमेखलै ।
संगम ग्रंथों में बहुत-से नगरों का उल्लेख मिलता है । इनमें उल्लिखित कावेरीपट्टनम् का समृद्धिपूर्ण अस्तित्व पुरातात्विक साक्ष्य से प्रमाणित हुआ है ।
ईसा की आरंभिक सदियों में प्रायद्वीपीय तमिलनाडु के लोगों के सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक जीवन के अध्ययन के लिए संगम साहित्य एकमात्र प्रमुख स्रोत है ।
5. विदेशी विवरण (Foreign Statement)
यूनानी लेखकों ने 326 ई. पू. में भारत पर आक्रमण करने वाले सिकन्दर के समकालीन के रूप में सैन्ड्रोकोटस के नाम का उल्लेख किया है । यूनानी विवरणों में सैन्ड्रोकोटस और चन्द्रगुप्त मौर्य जिनके राज्यारोहण की तिथि 322 ईसा पूर्व निर्धारित की गई है, एक ही व्यक्ति थे । यह पहचान प्राचीन भारत के तिथिक्रम के लिए सुदृढ़ आधारशिला बन गई ।
चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में दूत बनकर आए मेगस्थनीज की इंडिका उन उद्धरणों के रूप में सुरक्षित है, जो अनेक प्रख्यात लेखकों की रचनाओं में आए हैं ।
हेरोडोटस (Herodotus) को इतिहास का पिता कहा जाता है । इन्होंने हिस्टोरिका नामक पुस्तक की रचना की थी ।
यूनानी भाषा में लिखी गई पेरिप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी और टॉलमी की ज्योग्राफी नामक पुस्तकों में प्राचीन भूगोल और वाणिज्य के अध्ययन के लिए पर्याप्त महत्वपूर्ण सामग्री मिलती है ।
पेरिप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी 80 ई. से 115 ई. के मध्य किसी अज्ञात लेखक ने लिखी थी जिसमें लाल सागर, फारस की खाड़ी और हिंद महासागर में होने वाले रोमन व्यापार का वृत्तांत दिया गया है ।
टॉलमी की ज्योग्राफी 150 ई . के आस-पास की मानी जाती है । प्लिनी की नेचुरलिस हिस्टोरिका ईसा की पहली सदी की है । यह लैटिन भाषा में है तथा यह हमें भारत और इटली के बीच होने वाले व्यापार की जानकारी देती है ।
कास्मॉस इंडिकाप्लेस्टसः यह यूरोपीय यात्री था, जो 535 ई. में भारत आया तथा क्रिश्चियन टोपोग्राफी नामक ग्रंथ की रचना की जिसमें भारत-श्रीलंका के व्यापारिक सम्बंधों का मिलता है ।
सुलेमान : यह 9वीं शताब्दी में भारत आया था जिसने पाल व प्रतिहार शासकों के विषय में वर्णन किया था ।
अल्-मसूदी : यह 941 ई. से 943 ई. तक भारत में रहा । उसने राष्ट्रकूट शासकों के विषय में लिखा ।
अल-बरुनी : अलबरूनी (महमूद गजनवी का समकालीन) ने तहकीक-ए-हिन्द (किताब-उल-हिन्द) की रचना की, जिसमें भारत के निवासियों की तत्कालीन दशा का वर्णन किया गया है ।
चीनी लेखकों का वर्णन
लेखक
रचनाएँ
यात्री विवरण
1. फाह्यान (399-414 ई.)
फो-क्यो-की भारत की तत्कालीन का विवरण राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक दशाओं
फाह्यान ने अपनी 15 वर्ष की भारत यात्रा में प्रमुख नगरों, बौद्ध धर्म के पवित्र स्थानों का भ्रमण किया । उसने चन्द्रगुप्त द्वितीय (नाम का उल्लेख नहीं है) द्वारा शासित मध्य देश का विस्तृत वर्णन किया है । इसने गुप्तकालीन दण्डविधान, कृषि उपज पर कर, मध्य देश में ब्राह्मण धर्म की प्रधानता, धनो व्यक्तियों द्वारा मन्दिर, विहार, निः शुल्क पुण्यशालाओं एवं औषधालयों के निर्माण की जानकारी दी है । उसने पाटलिपुत्र में स्थित सम्राट अशोक के राजप्रासाद की भव्यता से प्रभावित होकर इसे देवनिर्मित बताया है ।
2. शुंग-युन (512-13 ई.)
इसने बिहार व बंगाल की तत्कालीन राजनीतिक, आर्थिक व धार्मिक स्थितियों का उल्लेख किया है ।
3, ह्वेनसांग (629-645 ई.)
सि-यू-की (पाश्चात्य)
ह्वेनसांग ने लगभग 16 वर्ष भारत की यात्रा की एवं यहाँ प्रवास किया । उसने विश्व के संसारलेख) प्रसिद्ध नालंदा विश्व विद्यालय में अध्ययन किया तथा यहाँ के ज्ञान एवं शिक्षण के उच्च स्तर की प्रशंसा की । उसके यात्रा विवरण में सम्राट हर्षवर्द्धन के शासनकाल, तत्कालीन भारत की राजनैतिक एवं सांस्कृतिक दशा का विस्तृत उल्लेख है । उसने कन्नौज (हर्ष की राजधानी) का नगर-वर्णन, हर्ष की दानशीलता समाज में विभिन्न जातियों, उपजातियों प्रयाग के एक बड़े समारोह (शायद कुम्भ), गंगाजल को पवित्रता आदि का वर्णन किया है ।
4. इत्सिंग (671-693 ई.)
प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षुओं की आत्मकथाएँ
इत्सिंग ह्वेनसांग के चीन लौटने के बाद भारत आया था । उसने बंगाल के ताम्रलिप्ति (वर्तमान तामलुक) 3 वर्षों तक संस्कृत का अध्ययन किया तथा बोधगया, नालंदा, वैशाली, कन्नौज, श्रावस्ती कपिलवस्तु आदि स्थानों की यात्रा की । अपने यात्रा वृत्तांत में उसने नालन्दा एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालयों की शिक्षा प्रणाली, हर्षकालीन समाज, तथा तत्कालीन भारत में प्रचलित बौद्ध धर्म के चार सम्प्रदायों का उल्लेख किया है । इत्सिंग चीन वापस जाते समय अपने साथ बौद्ध त्रिपिटकों की 400 प्रतियाँ ले गया ।
5. मात्वेन लिन 7वीं शताब्दी
–
इसने हर्षवर्द्धन के पूर्वी भारत पर आक्रमण अभियान का वर्णन किया है ।
6. चाऊ जू कुआ 1225-1254 ई.
चू-फान-ची
इससे 13वीं शताब्दी के चीनी-अरबी व्यापार का विवरण प्राप्त होता है ।